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कविगुरु की प्रतिछवि 

by Rajesh Khar

उत्तर भारत के एक साधारण से शहर की एक गली में, एक अतिसाधारण होमिओपैथी के दवाख़ाने में, एक ३०-३२ वर्षीय डॉक्टर, एक मोटी सी भूरे रंग की जिल्द वाली किताब में से एक कविता की आवृत्ति कर रहा था। २-३ अन्य लोगों के साथ ही बैठे-बैठे मैं भी वह कविता पाठ सुन रहा था। और उस होमिओपैथी की दुकान का मुआयना भी मेरी आँखें साथ ही साथ कर रही थीं। दवाइयों की शीशियों की कतारों के ऊपर, सबसे ऊपर वाले ताकों, पर मोटी जिल्दों वाली किताबों की लम्बी कतार सजी हुई थी। उस दूरी से मैं यह नहीं देख पा रहा था कि उनपर लिखा क्या था। उधर डॉक्टर साहब का कविता पाठ ख़तम हुआ। सब मुस्कुराए, किसी ने वाह वाही की और किसी ने सुन्दर, सुन्दर कहा। डॉक्टर ने बड़े गर्व से घोषणा की कि यह तो हिन्दी अनुवाद था और वह मौलिक बांग्ला भाषा में भी ये कविताएं पढ़ सकते हैं। उस युवा पंजाबी सिख डॉक्टर ने गर्व से ऊपरी ताकों पर सजी पुस्तकों की लम्बी कतारों को दिखाते हुए हमें बताया कि वो टैगोर की समस्त रचनाएँ थीं और मौलिक बांग्ला भाषा में थीं ! अब मेरे पास बोलने को कुछ नहीं था, मैं उस डॉक्टर की तरफ आश्चर्य से देख रहा था। सभी के चले जाने के बाद मैंने उनसे पूछा कि उन्होंने बांग्ला भाषा कैसे सीखी? डॉक्टर ने बताया कि उन्होंने कालेज के दौरान अंग्रेज़ी की किताबों में टैगोर के नाटक और कहानियाँ पढ़ी थीं। उन्हें बड़ा मज़ा आता था। अंतिम वर्ष में उनके अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर बांग्ला भाषी थे और उस वर्ष उन्हें टैगोर की रचनाओं को पढ़कर जो आनन्द प्राप्त हुआ, वह अप्रतिम था। उन्हें  वैसे साहित्य का ‘चस्का’ लग गया था। कालेज समाप्त होने के बाद क्योंकि उनके करने को तत्काल कुछ था नहीं, तो वह किसी तरह शांतिनिकेतन जाने की कोशिश में जुट गए। आखिरकार होमिओपैथी की पढ़ाई करने के बहाने कलकत्ता (कोलकाता) जा पहुँचे। वहाँ न केवल उन्होंने डॉक्टरी सीखी, बल्कि बांग्ला भाषा और रबीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखी अनेकानेक रचनाओं का अध्ययन भी किया, नाटक किए, गीत गाए और नृत्य भी किया ! वह १०-११ वर्ष बंगाल में रहे। कैसी कशिश थी उस लेखन में कि दो हज़ार किलोमीटर दूर से एक पंजाबी सिख नवयुवक एक अनजान भाषा सीखने को उतावला हो गया था !

शांतिनिकेतन में स्थित नन्दलाल बोस द्वारा रचित श्यामली-चित्र राजेश खर, २०१९

१९९२ ईस्वी की इस छोटी सी घटना के बाद अकस्मात ही मुझे कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की प्रतिध्वनि किसी न किसी रूप में सुनाई देने लगी – हमारी पाठ्यपुस्तकों में, जो नाटक हम लोग करते थे उनकी तैयारी में, कलाकृतियों में, दिन-प्रति दिन की दौड़ धूप में भी। और थोड़े समय में मैंने भीष्म साहनी, बलवंत गार्गी, देविंदर सत्यार्थी जैसे अनेकों प्रख्यात लेखकों, नाटककारों के बारे में जाना जो कविगुरु की रचनाओं से भरपूर प्रभावित थे – लेखन में भी और अपने निजी जीवन में भी ! यह मेरा सौभाग्य है कि बाद में मुझे दिल्ली में कविगुरु रचित कई नृत्य-नाटिकाओं के मंचन में भाग लेने और कुछ एक में गाने का भी अवसर प्राप्त हुआ।

आज कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की जन्मतिथि पर उनका स्मरण हो आया तो उस पंजाबी डॉक्टर साहब की याद ताज़ा हो उठी। जीवन का कोई ऐसा क्षत्र नहीं है जिसमें रबीन्द्रनाथ की छवि नहीं मिलती। ऐसे में उनके बारे में लिखना सूरज को दिया दिखाने से भी कम है और ऐसा दुस्साहस मैं नहीं कर पा रहा हूँ। हमारे जीवन में ऐसी अनगिनत वस्तुएँ हैं जिनमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में रबीन्द्रनाथ की कोई न कोई छवि अवश्य उभरती है। हमारी अपनी पुस्तकों को ही ले लीजिए। अनेक में मुझे अनायास ही टैगोर की प्रतिछवि दिखाई पड़ती है, चाहे वो शब्दों के रूप में हो, कला के रूप में, रंगों मैं हो या फिर सभी का सम्मिश्रण। आप खुद देख लीजिए…

आप क्या कर सकते हैं?  

Translated by Manisha Chaudhry, original story Can and Can’t by Radha HS and illustrated by Ruchi Shah

ऊँट चला, भई! ऊँट चला

Written by Prayag Shukla and illustrated by Siraj Saxena

कहानियों का शहर

Translated by Sarvendra Vikram, original story City of Stories by Rukmini Banerji and illustrated by Bindia Thapar

शॉल का आख़िर क्या हुआ?

Translated by Arvind Gupta, original story What happened to the shawl? by Arvind Gupta and illustrated by Debasmita Dasgupta

विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

Translated by Manohar Notani, original story The Elephant Bird by Arefa Tehsin, illustrated by Sonal Goyal and Sumit Sakhuja

The Elephants Who Liked to Dance/नाच उठे हाथी

Translated by Amrit Mishra and Rajesh Khar, original story ହାତୀମାନଙ୍କ ନାଚ/ହାତୀକଆଃ ସୁସୁନ୍ by Munda Writers’ Group, illustrated by Pradip Kumar Sahoo and Sugrib Kumar Juanga

सुरीली मौटूशि

Translated by Swagata Sen Pillai, original story মৌটুসির গান by Maitreyi Shome and illustrated by Supriya Tirkey

 

यह किसने किया?

Translated by Sandhya Gandhi-Vakil, original story हे कोणी केलं? written and illustrated by Madhuri Purandare

सब्ज़परी का जलतरंग

Translated by Rajesh Khar, original story سبز پری کا جل ترنگ by Shahid Anwar and illustrated by Nilesh Gehlot

 

मुफ्त की कुल्फी

Written and illustrated by Alankrita Amaya 

Rajesh Khar is an Editor at Pratham Books. Happiest in the company of children, Rajesh loves to create, translate and listen to stories. In his spare time, he enjoys the performing arts and travel – his version of ‘awara gardi‘.

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