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बाल साहित्य में लोक साहित्य

– संध्या, हिन्दी संपादक, प्रथम बुक्स

हिन्दी दिवस पर अपने बच्चों को हिन्दी में लोक साहित्य की बेहतरीन पुस्तकें पढ़ने का सुझाव दें।

लोक साहित्य, बाल साहित्य की महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इसमें बाल साहित्य का अतुल भंडार उपलब्ध है। यह एक ओर जहाँ बालकों का मनोरंजन करता है, वहीं बाल साहित्य रचना के सूत्र भी प्रदान करता है। अनेक बाल कविताएँ, कहानियाँ और नाटक लोक साहित्य की पृष्ठभूमि पर निर्मित हुए हैं।  

प्रथम बुक्स के पास लोक साहित्य का जो खजाना है उसमें कहानी, कविता, नाटक सभी मौजूद हैं। इन कहानियों में ऊँट के पहली बार राजस्थान आने  की कथा पर आधारित केलम को चाहिए ऊँट, दाँत टूटने से संबंधित हिमालय की लोककथा हिलता डुलता दांत, गौतम बुद्ध के आश्रम की व्यवस्था से संबंधित शॉल का आख़िर क्या हुआ?, फसल बोना सीखने के इतिहास से संबंधित मुंडा लोककथा सोमा क्या बोये? आदि प्रमुख हैं।  

बाल साहित्य में लोक काव्यों का भी प्रचूर योगदान है। हाथी भाई कविता हाथी की विशेषताओं को बताने के साथ बाल पाठकों गुदगुदाती है। काका और मुन्नी इसी तरह की काव्यमय कहानी है, जो पंजाब की लोककथा पर आधारित है। इस पुस्तक के काव्य की रोचकता का एक नमूना इस प्रकार है-

लोक नाट्य  साहित्य पुस्तकों में, नाट्य रूपांतरण लाडले का ढोल बहुत खूबसूरत रचना है। अनेकों बार इसका मंचन भी हुआ है। असम के लोक नाट्य भाओना पर आधारित भूतों का रंगमंच लोक नाट्य साहित्य पर पंकज सैकिया की एक खास पुस्तक है।   

लोक साहित्य मानव का आदि साहित्य है। यह उस युग का साहित्य है, जब मानव प्रकृति की गोद में रहता था। उसके जीवन में प्रकृति की ही प्रधानता थी। एक ओर उसका जीवन था दूसरी ओर पशु-पक्षियों का। पशु-पक्षियों तथा वृक्षों और लताओं से उसका इतना अधिक सानिध्य था कि वह उनको अपने जीवन का अंग समझता था। अपनी तीव्र कल्पना शक्ति से उसने यह मान लिया था कि पशु-पक्षी ही नहीं वृक्ष-लताएँ तक मानव से बात कर सकते हैं। इसी आधार पर लोक साहित्य में पशु-पक्षी, वृक्ष-लताएँ आपस में बातें करते हैं और मानव से भी। इसी का एक उदाहरण है कहानी किस्सा बुली और बाघ  का, जिसमें बाघ गाँव वालों को संकट से उबारने के लिए हमेशा मौजूद रहता है। इसके लिए वह गाँव वालों से संवाद भी करता है। लोक साहित्य लोक जीवन की सच्ची अभिव्यक्ति है। जैसे जिस देश के लोक  जीवन के उपादान रहे हैं, वैसा ही उस देश का लोक साहित्य रहा है। लोक जीवन की आशा, आकांक्षा, अभाव और अनुभूतियाँ इस साहित्य में क्रमबद्ध अंकित होती गई हैं। 

लोक साहित्य मौलिक परंपरा से प्राप्त साहित्य है। किसी अनादि  काल में उसकी  रचना हुई। यह रचना आगे भी पीढ़ी की वाणी पर बढ़ी। उसने उसमें परिवर्तन, परिवर्द्धन किया और आगे की पीढ़ी को भावनामय लोक साहित्य का भार सौंप दिया। मौखिक परंपरा में लोक साहित्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त होता रहा है। पीढ़ियों और व्यक्तियों के परिवर्तन ने ही लोक साहित्य की भावधारा में परिवर्तन किया और उसे लोकप्रियता प्रदान की। इसका एक उदाहरण सात पूँछ वाले चूहे की कहानी है। इस पर एक कहानी है सत्ता चूहा, जो वानर पत्रिका में 1931 में छपी थी-

एक चूहा था। उसकी सात पूँछें थी। इससे उसका नाम सत्ता चूहा पड़ गया था। 

जब वह बड़ा हुआ, उसकी माँ ने उसे  स्कूल भेजा। स्कूल के लड़के उसकी सात पूँछें देखकर खूब हँसने लगे और-

सात पूँछ का सत्ता

कैसे पहने लत्ता

कहकर उसे  ख़ूब चिढ़ाने लगे।

इसी तरह की एक कहानी है बाप्सी सिधवा द्वारा लिखित सात पूँछ वाली चुहिया। लोक कहानियाँ हमें मौखिक परंपरा से प्राप्त हुई हैं। मौखिक परंपरा ने लोक साहित्य के स्वरूप में विविधता पैदा की है। इससे एक लाभ यह हुआ है कि प्राचीनकाल से आधुनिक सभ्यता तक मानव के सांस्कृतिक इतिहास का समावेश हो गया है।

 

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