प्रथम बुक्स कविता संसार
by Sandhya Tiwari
कविता साहित्य की सबसे पुरानी विधाओं में से एक है। कविता बालमन के बेहद करीब होती है। बचपन में स्कूल जाने के साथ बच्चों को सबसे पहले मनोरंजक कविताएँ ही पढ़ाई और सुनाई जाती हैं। प्रथम बुक्स के पास बेहतरीन कविताओं का संकलन मौजूद है जिन्हें विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है। इन कविताओं की विशेषता है कि जहाँ एक तरफ यह मनोरंजक हैं वहीं बाल मन के अनुकूल भी हैं।
इन कविताओं में बच्चों की प्यारी दादी बहुत निराली हैं (निराली दादी))
सबकी दादी भोली-भाली
कहें कहानी सीखों वाली
हमारी दादी बड़ी निराली
बने बाज़ीगर लगें मतवाली
तो उनकी छुट्टियाँ बीतती हैं किसी अनोखे द्वीप पर (छुट्टी) :
छूट्टियाँ द्वीप हैं
मुझ अकेले की
आज़ादी के कोने का।
हमारी इस कविता संसार को सबसे अधिक समृद्ध किया है लवलीन मिश्रा ने। इनकी कविताओं में छुट्टी की मस्ती है तो पूँ-बू, थूकम थू, खाज़ाना-ए-नाक जैसी अक्सर चर्चा से बाहर रहने वाली पर रोज़ाना ज़िन्दगी में मौजूद रहने वाले विषय भी हैं। इनकी कविताओं में क्रिकेट की मस्ती है तो खेल में हार का डर भी है :
जब वह नहीं होता
टीम लगाती गोते पर गोता
दादी हो या पोता
आधा हिन्दुस्तान है रोता (क्रिकेट प्रर्थना)
उनकी कविताओं की पात्र एक साधारण सी लड़की चीकू भी होती है जो अपने चकाचक काम के द्वारा सबका दिल बहलाती है और साथ ही यह भी दिखाती है कि अपने काम के द्वारा कोई भी असाधारण बन सकता है।
मेनका रमन की कविताओं में बच्चों के जीवन के कुछ प्यारे किरदार नज़र आते हैं साथ ही इनमें उनका मर्म भी दिखता है जो कभी हमें हँसाता है तो कभी गुदगुदाता है। कभी उनका बाल नायक अपने कुत्ते मुसीबत को याद कर रोता है तो कभी ‘मेरे सांभर में चमादड़’ के बाल नायक की तरह चमगादड़ों को समझने की कोशिश करता है। बच्चे स्कूल में महज़ पढ़ते ही नहीं बल्कि खेलते भी हैं और विभिन्न प्रकार के खेलों से उनका खास लगाव होता है। यह लगाव ‘खेल दिवस‘ के उत्साह में और अधिक बारीकी से दिखता है।
परेड में गर्व से भरी है ताल
दहिने-बाँए-दहिने होती कोकी की चाल
इन कविताओं में बच्चों के शौक, खेल और पालतुओं का ही ध्यान नहीं बल्कि उनके अधिकारों की
सुरक्षा का भी पूरा ख़याल है। मेरे अधिकार मैं जानूँ ऐसी ही कविता है।
लावण्या कार्तिक अपनी कविताओं में कभी ‘शमकिरी शुमकिरी’ करती हैं
आड़ू जैसे गोलम गोल
बंसी बजाए बिल्ली
और चूहा पीटे ढोल
तो कभी ‘अनु क्या देखती है’ इस पर नज़र रखती हैं।
जितेन्द्र भाटिया लिखित ‘गप्पू गोला’ एक विशेष कविता है। इसमें गप्पू गोला का सफर बड़े मनोरंजक ढंग से लिखा गया है। इस मज़ेदार किस्से में वह दुनियाभर का सफर तय करता है :
गया फारसी पढ़ने सिडनी
वहाँ से लाया इडली चटनी
प्रसिद्ध कवि प्रयाग शुक्ल लिखित ‘ऊँट चला भई ऊँट चला’ में चौदह कविताएँ संकलित हैं। धम्मक धम्म, चले स्कूल, पीली नीली न्यारी तितली, ऊँट चला भई ऊँट चला, मोर, बड़ा कीमती, झर-झर, सरपट-सरपट, झूला झूले, छाता, बहती जाए, मेरी पेंसिल, रेल चली कविताएँ संकलित हैं। इनमें ‘रेल चली’ के रेल की छुक-छुक तो देखिए :
रेल चली, भई रेल चली
छुक-छुक करती रेल चली
पटरी-पटरी रेल चली
सीटी देती रेल चली।
नहीं पसिंजर धीमी सी
आज हमारी मेल चली
रेल चली भई, रेल चली
हरि कुमार नायर की कविता ‘क्या होता अगर’ बच्चों की कल्पना शक्ति का विकास करने वाली सुंदर कविता है। श्याम को स्कूल के लिए सुबह जागना बिल्कुल पसंद नहीं है। पर उसे मज़ेदार ख़याल बहुत पसंद है। अक्सर अपने इन्हीं ख़यालों की वजह से वह स्कूल के लिए तैयार होने में देर भी कर देता है।
रोहनी निलेकणी लिखित और मनीषा चौधरी द्वारा अनूदित ‘उलट-पुलट’ भी बच्चों की कल्पना शक्ति को बढ़ाने वाली सुंदर कविता है जहाँ बच्चे को पंखे में ऑक्टोपस दिखता है और गुड़िया दाल-चावल खाते हुए पाई जाती है।
पंखे ने निकाले आठ-दस हाथ
गुड़िया खाए मज़े से दाल-भात
कमला बकाया लिखित ‘सबरंग’ में चार कविताएँ संकलित हैं जिनमें और बुलाओ एक जना, चंदू, बुड्ढा महाराज कुचला गया मोटर से आज, मैं हूँ एक नन्ही सी बाल शामिल हैं। इनमें चंदू कविता की ये पंक्तियाँ कितनी सुंदर बन पड़ी हैं :
घर वालों के काम न आए
ऐसा पढ़ना भाड़ में जाए
छिः छिः यह कैसा अंधेर
घर में गीदड़ बाहर शेर
अदिति दिलिप लिखित और आरती स्मित द्वारा अनूदित ‘ऊपर देखो’ एक मज़ेदार कविता होने के साथ बच्चों की विवेक शक्ति को बढ़ाने का भी काम करती है।
सुबह-सुबह दाने की तलाश में
पंछी उड़ रहे आकाश में
ज़रा बताओ किसने पकड़ा
मज़ेदार कीड़ा अपनी चोंच में
अंबिका राव लिखित और राजेश खर द्वारा अनूदित घाट की मायावी बिल्ली प्रकृति के मनोरम चरित्रों की कहानी कहती है। यह हमें पश्चिमी घाट के घने जंगलों में ले जाती है। यह एक वन्य प्राणी फोटोग्राफ़र की एक मायावी जंगली बिल्ली की खोज की रोचक कथा कहती है जिसमें वह अनेक मज़ेदार प्राणियों से मिलता है।
हाथी भाई गुजराती लोककविता है जो सभी को बहुत प्यारी है। बच्चे इसे वर्षों से गाते आ रहे हैं। शिविका नायर लिखित ‘संगीत की दुनिया’ अनोखे लय के साथ विभिन्न वाद्य यंत्रों से बाल पाठकों का परिचय कराती है। माधुरी पाई लिखित और मिनाक्षी मुखर्जी द्वारा अनूदित ‘हवा’ गाते-गुनगुनाते हवा की शरारतों से रू-ब-रू कराती है। इसी प्रकार अलंकृता अमाया लिखित ‘मुफ़्त की कुल्फी’ उत्तर भारत में बचपन, गर्मियों और मोहल्ले की गलियों के एक अनोखे रिश्ते और ठंडी-ठंडी कुल्फियों के मीठे से स्वाद का अस्वाद जगाती हैं। अपर्णा कपूर लिखित और कविता कुशवाहा द्वारा अनूदित ‘करामाती बटन’ कविता बटन के करामातों का सुंदर काव्यमयी वर्णन करती है!
हमारी कविताओं की पिटारी में सलिल चतुर्वेदी की दो कविताएँ हैं। ‘मेरे भइया की पहिया कुर्सी’ में भाई-बहन की जोड़ी और भाई की पहिया कुर्सी से हमारा परिचय होता है। यह अनोखी जोड़ी कैसे-कैसे पार्क, बाज़ार, पिकनिक और अन्य कई सारी जगहें घूमती-फिरती है और खूब मौज उड़ाती है इसका हमें पता चलता है। साथ ही इस कविता में हम यह भी पाते हैं कि विकलांगता या सकलांगता हमारी सोच में है अगर हम खुश रहना जानते हैं और औरों को भी खुश रखना चाहते हैं तो हमारी छोटी-छोटी बातों एवं कार्यों से खुशियाँ फैलायी जा सकती हैं। सलिल चतुर्वेदी की दूसरी कविता ‘बारिश मुझे प्यारी प्रकृति की सबसे खूबसूरत दोस्त वर्षा और उसके उल्लास की कहानी सुनाती है। इस कविता की एक विशेषता यह भी है कि स्वयं कवि द्वारा ही इसका हिन्दी अनुवाद भी किया गया है। वह लिखते हैं : “पक्षियों की चहक और पर्यावरण की हरियाली, बस यूँ लगती है बारिश मुझे प्यारी”
प्रसिद्ध लेखक जेरी पिंटो लिखित ‘मिंग मिंग का बाल अनोखा’ एक मज़ेदार कविता है। यह मूल कविता जितनी खूबसूरत है उतने ही खुबसूरत बन पड़े हैं इसके सभी अनुवाद। मिंग-मिंग भालू की परेशानी हमारी प्रत्येक भाषा में बाल पाठकों को वास्तविक कविता- सा ही रस देती है :
अब मिंग-मिंग को भाने लगा वो बाल
खड़ा सिर पर जैसे बहादुर की ढाल
चलो फैलाएँ अब बालों का जाल
होना ही चाहिए कुछ ऐसा धमाल!
कमला भसीन लिखित बेटियाँ भी चाहें आज़ादी लड़कियों की आज़ादी के नारे को बुलंद करती हमारी नवीन कविता है। इसी प्रकार कपिल पांडेय किसलय लिखित सरहदों की लकीरों पर चोट करती लकीरें एक अद्भुत कविता है जो पाठकों को भाईचारे और सद्भावना के भाव से सराबोर करती है।
लगे खींचने फिर वो लकीरें
गाढ़ी लकीरें, काली लकीरें
मोटी लकीरें, ऊँची लकीरें
गहरी लकीरें, ज़हरी लकीरें
तीन किताबों की श्रृंखला में ‘कला के रूप अनेक’ हमारी नवीन कविताएँ हैं जो कविता की मस्ती के साथ विभिन्न कलाओं से भी हमारा परिचय कराती है। इस प्रकार प्रथम बुक्स की कविताएँ अपने कलेवर में विविध और रंगों में ‘सबरंगी’ हैं।