29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुए बाघ सम्मेलन में इस दिन को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। इनके संरक्षण के लिए कई देश मुहिम चला रहे हैं, लेकिन फिर भी पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि इनकी संख्या घटने की रफ्तार ऐसी ही रही तो आने वाले एक-दो दशक में बाघ का नामो निशान इस धरती से मिट जाएगा। आप और हम, जिस बाघ को देखकर डर जाते हैं और उनकी गरज सुनकर अच्छे-अच्छे काँप जाते हैं, बच्चों के लिए वही बाघ दिलचस्पी का विषय हैं। वह बाघों का संरक्षण चाहते हैं और उनके बारे में जानना चाहते हैं।
प्रथम बुक्स की विभिन्न पुस्तकें बाघों के बारे में दिलचस्प जानकारी और मनोरंजन से भरपूर है। बाघ, बाघ, तुम कहाँ हो? में मुजाहिद खान बिना देखे बाघ को देखने का तरीका बताते हैं। चिड़ियाघर में कैद बाघ को देखने से अलग, यह आज़ाद बाघ के जीवन में बिना कोई विघ्न डाले, उसे देखने का अनुभव है। बाघ की लीद, पंजों के निशान और गंध से जंगल में उनके अस्तित्व का पता चलता है।

चित्र स्रोत- बाघ बाघ तुम कहाँ हो?, लेखन- मुजाहिद खान, चित्रांकन- मंजरी चक्रवर्ती और हिन्दी अनुवाद- प्रियंका गौतम
बाघ का जीवन कैसा होता है, उसकी क्या मुश्किलें, क्या खूबियाँ हैं, इसकी कहानी है देखो देखो! बाघ आ गया! हमारा राष्ट्रीय पशु बाघ, हमारी वन्य जीव संपदा का भी प्रतीक है। इसके विषय में हमारे अलग-अलग प्रांतो में विभिन्न किस्से भी मौजूद हैं। ऐसा ही एक किस्सा है, किस्सा बुली और बाघ का। असम के एक गाँव की पृष्ठभूमि पर आधारित इस कहानी में बाघ महज एक जीव नहीं, बल्कि देवता का प्रतीक है, जो गाँव वालों को आपदाओं से बचाता है।
बाघ हमारे पारिस्थितिक तंत्र को मज़बूत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। द ग्रेट रिफ़ासा में हमारी बाघिन नामा, काजल, और चुक्की कोविड महामारी के दौर में इनसानों के लिए चिंतित हैं। वे पूरी तत्परता से मनुष्यों को ढूँढ़ने में लगी हैं।

चित्र स्रोत- द ग्रेट रिफ़ासा, लेखन- रोहिणी निलेकनी, चित्रांकन- संगीता कडूर और हिन्दी अनुवाद- पंकज चतुर्वेदी
ये पुस्तकें हमारी पारिस्थितिकी के लिए उपयोगी, इस जीव के विभिन्न पक्षों का रोचक परिचय देते हैं। तो इन्हें पढ़िए और सोचिए बाघों और उनके संरक्षण के बारे में।