बाल साहित्य में किसी विचार या चिंतन को स्वभाविक ढंग से लाना कहीं अधिक कठिन काम है क्योंकि बाल साहित्य में न सिर्फ़ भाषा के सरल होने की अपेक्षा होती है बल्कि उसका कथ्य भी आसान होना चाहिए। बाल साहित्य में अगर कोई विचार आए तो यह ज़रूरी है कि वह बाल मनोविज्ञान या यूँ कहें कि बालक की समझ के अनुकूल हो। हर्ष का विषय है कि प्रथम बुक्स की किताबों में यह गुण मौजूद है।
बाल साहित्य को किसी भी विमर्शात्मक खाँचे में नहीं डाला जा सकता परंतु बाल साहित्य में अगर कोई भी विचार या विमर्श स्वाभाविक रूप में आए तो उसका अवश्य स्वागत होना चाहिए। महिला, बालिका या स्त्री चिंतन को बाल साहित्य में पर्याप्त जगह मिली है। यहाँ काल्पनिक कहानियों, जीवनी, आत्मकथा, संस्मरण, उपन्यास आदि लगभग सभी विधाओं में महिलाओं, उनके विचार, उनकी समस्याएँ, उनकी खुशी की उपस्थिति देखी जा सकती है।
प्रथम बुक्स की बहुत सी पुस्तकों के केन्द्र में इतिहास है। और इतिहास में महिलाओं का खास स्थान रहा है। संध्या टाक्साले लिखित अहल्याबाई होल्कर भारतीय इतिहास की एक विशेष और सशक्त महिला से हमारा परिचय कराती है। पुस्तक से हमें पता चलता है कि वो न सिर्फ़ एक कुशल शासक थी बल्कि एक दूरदर्शी नेता भी थी ‘तीन सौ बरस पहले भी अहिल्याबाई वे अधिकार देने में समर्थ थी जिनके लिए आज भी महिलाओं को संघर्ष करना पड़ता है। उन्होंने वे कानून खत्म कर दिए जो विधवाओं को संपत्ति का स्वामित्व पाने और बच्चे गोद लेने से रोकते थे।’
सुभद्रा सेन गुप्ता लिखित We call her Ba – A Biography of Kasturba Gandhi जिसका हिन्दी अनुवाद मधु बी. जोशी ने हम उन्हें बा कहते हैं शीर्षक से किया है, कस्तूरबा गांधी की दिलचस्प जीवनी है। कस्तूरबा कोई साधारण महिला नहीं थीं। उनमें साहस कूट-कूट कर भरा हुआ था, उनकी अपनी विशेष पहचान थी और उनके दृढ़ संकल्प के आगे किसी की नहीं चलती थी। उन्होंने देश के लिए बहुत कुछ किया था। वे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की विश्वासपात्र मित्र व संगिनी थीं। बापू की जीवनी लिखने वाले लुई फ़िशर ने बा के विषय में लिखा है, “स्वयं की पहचान बनाये रखते हुए महात्मा गाँधी की छाया बन जाना उन्हें एक उल्लेखनीय महिला बना देता है।” इस अद्भुत महिला ने भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे कठिन समय में दुनिया के प्रमुख नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया।
रुपाली भवे लिखित LIGHTS…CAMERA…ACTION! The life and times of Dadasaheb Phalke जिसका हिन्दी अनुवाद दीपा त्रिपाठी ने किया में भारत की पहली फिल्म संपादक सरस्वती जो दादासाहब की पत्नी थीं की कहानी को खास स्थान मिला है। यह कहानी दादा साहब की कामयाबी के पीछे सरस्वती बाई की मेहनत को बखूबी बयाँ करती है।
ख्वाज़ा अहमद अब्बास की मूलतः उर्दू में लिखित भारत माता के पाँच रूप जिसका हिन्दी लिप्यांतरण सईदा हमीद ने किया है अपने आप में बहुत अनोखी पुस्तक है। इस संस्मरणात्मक पुस्तक में ख्वाज़ा अहमद अब्बास इतिहास से ओझल पर भारत के वर्तमान को बनाने में बड़ी भूमिका निभाने वाली महिलाओं को भारत माता के रूप में देखते हैं। ये महिलाएँ उनकी वास्तविक जीवन का हिस्सा थी और भारत के वर्तमान को गढ़ रहीं थीं। अब्बास लिखते हैं, “जब मैं भारत माता की जय का नारा सुनता हूँ, मेरे दिमाग में चंद मामूली औरतों की तस्वीरें उजागर होती हैं। उनमें से कोई मशहूर नहीं है। उनकी तस्वीर तो क्या, उनमें से किसी का नाम भी आज तक अख़बारों में नहीं छपा। मगर उनमें से हर एक भारत माता कहलाने का हक़ रखती हैं।”
इतिहास सम्बन्धी पुस्तकों के अलावा प्रथम बुक्स में जीवनी पुस्तकें भी प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हैं। नंदिता जयराज द्वारा लिखित Anna’s Extraordinary Experiments with Weather जिसका हिन्दी अनुवाद पूजा ने अन्ना मणि – एक प्रखर मौसम विशेषज्ञा शीर्षक से किया है, एक जीवनी रूपी कहानी है। बचपन से ही उनका किताबों से लगाव बाल पाठको की पढ़ने में रुचि जगाने का कार्य करता है : “अन्ना मणि देश की सबसे प्रखर मौसम वैज्ञानिकों में से एक बन गई। यहाँ तक कि जब वह बुजुर्ग और अधिक विख्यात भी हो गई, तब भी उसके खास मित्र नहीं बदले। उसके असली देस्त वही रहे। किताबें, किताबें और ढेर सारी किताबें।”
श्रीलता मेनन लिखित Dipa Karmakar – In Perfect Balance जिसका हिन्दी अनुवाद दीपा कर्माकर एक अद्भुत संतुलन शीर्षक से डॉ अमरदीप ने किया है, भारतीय जिमनास्ट दीपा कर्माकर के संघर्ष की कहानी है। दीपा कर्माकर रियो ओलंपिक गेम्स 2016 में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट हैं। वे त्रिपुरा में पली-बढ़ी और पाँच वर्ष की उम्र में उन्होंने जिमनास्टिक सीखना शुरू किया। आज वह सभी बच्चों के लिए आदर्श हैं जिसके बारे में सभी जानना चाहते हैं।
शिखा त्रिपाठी द्वारा लिखित Tine and the faraway mountain उत्तर पूर्व भारत की टीने मेना की एक बेहतरीन कहानी है जिसका टीने और दूर बसे पर्वत शीर्षक से हिन्दी अनुवाद पूनम एस. कुदेसिया ने किया है। वूशू! वूशू! इचाली के पर्वतीय प्रदेश में टीने को यही आवाज़ सुनाई देती थी। ये पर्वत उसे बुला रहे थे। जैसे-जैसे वह बड़ी होती है टीने अपने प्यारे पर्वतों के और क़रीब जाने का सपना देखने लगती है। वह दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत पर पहुँची? अरुणाचल प्रदेश की पर्वतारोही के जीवन पर आधारित इस कहानी में, सपनों और आत्मविश्वास की शक्ति का वर्णन किया गया है। कहानी का सबसे महत्त्वपूर्ण अंश टीने का यह कथन है, “मैंने अपने डर से आज़ादी पा ली थी, मुझे ना तो मानदंडो का डर था, ना ही समाज का मैं न तो असफलता से डरती थी, न मृत्यु से। मुझे अपनी ताक़त पर पूरा विश्वास था और मैंने अपनी क़ुदरती प्रतिभा को जमकर माँजा। अपनी कमज़ोरियों को दूर किया और सबसे ज़रूरी बात यह कि मैंने हमेशा अपनी सुनी।” टीने ने आर्मी अभियान दल में भेष बदलकर कुली की नौकरी की जबकि महिलाओं को यह नौकरी करने का अधिकार नहीं था। बात खुलने पर टीने को इसके लिए डाँट भी पड़ी पर तब तक टीने यह साबित कर चुकी थी कि महिलाएँ ये काम कर सकती हैं और इस वजह से महिलाओं पर पाबंदी हट गई। वह उत्तर पूर्व भारत से, माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला बनीं।
एलिशा सादिकोट लिखित Cracking the code: Women who have changed the way we look at computers दुनियाभर में तकनीकी जगत में अपनी खास पहचान बनाने वाली महिलाओं से हमारी परिचय कराती है। इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद ऋषि माथुर ने कोडिंग के शिखर पर: कंप्यूटर और कोडिंग को नयी दिशाएँ देने वाली अग्रणी महिलाएँ शीर्षक से किया है। यह पुस्तक हमें बताती है कि पहले पहल ‘कंप्यूटर’ मशीनें नहीं, मनुष्य थे। उनमें अधिकतर महिलाएँ थीं।“फ्रांसेस स्नीडर होल्बर्टन, जेन जेनिंग्स बार्टिक, कैथलीन मैकनल्टी मौकली एंटोनेली, मर्लिन वेसकाफ़ मेल्टज़र, रूथ लिक्टरमन टेटलबाम और फ्रांसिस बिलास स्पेंस इएनआइएसी (एनिऐक) यानी अमरीका में बने पहले इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर की मूल प्रोग्रैमर थीं।” इस पुस्तक में अंतरिक्षयात्री वंदना वैंडी वर्मा, डिज़ाइनर अनौक विप्रेख्त, प्रोफेसर संघमित्रा बंधोपाध्याय, फ़रिश्तेह फ़ॉरोग़, ताईवान की डिजिटल मामलों की मंत्री ऑड्रे टैंग, संयुक्त राज्य अमरीका की मारग्रेट हैमिल्टन, ग्रेस हॉपर और कैथरीन जॉनसन, एडा लवलेस, जर्मनी की ग्रेस हरमान, रोज़ा पीटर, ब्लेचले महिलाएँ, राडिया पर्लमैन, डेम स्टेफ़्नी स्टीव शर्ली, अबिसोये अजायी-अकिनफ़ोलरिन, अदिति प्रसाद और दीप्ति राव के कोडिंग और कंप्यूटर जगत में अपनी पैठ बनाने की कहानी लिखी गई है।
वीणा प्रसाद रचित Sudipta Sengupta – The Rock Reader अंटार्कटिका में भारत की प्रथम महिला भूवैज्ञानिक सुदिप्ता सेन गुप्ता की कहानी है जिसका हिन्दी अनुवाद स्वागता सेन पिल्लै ने सुदीप्ता सेनगुप्ता – चट्टान पाठिका शीर्षक से किया है। वह दुनिया की सबसे बर्फीली जगह अंटार्टिका जाने वाली शुरुआती महिलाओं में से थी।
कमला भसीन द्वारा लिखित सतरंगी लड़कियाँ : सतरंगी लड़के एक बेहद खास पुस्तक है जो बच्चों में लैंगिक विभाजन को लेकर बनाई गई रूढ़ियों पर चोट करती है। इस पुस्तक में मौजूद लैंगिक विचार पर हिन्दी के वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध बाल साहित्यकार प्रकाश मनु लिखते हैं-
कमला भसीन की पुस्तक ‘सतरंगी लड़कियाँ : सतरंगी लड़के’ हजारों सालों से चले आ रहे इस भेदभाव भरे नजरिए पर गहरी चोट करने वाली पुस्तक है, जिससे हमारे समाज में लड़के और लड़कियों का एकांगी नहीं, संपूर्ण विकास हो। वे पूर्वाग्रह रहित होकर मुक्त जीवन जिएँ। इसलिए कमला भसीन एक-एक कर लड़कियों और लड़कों के सारे रूप सामने रखती हैं। यहाँ तक कि उनके परस्पर विरोधी जान पड़ते रूप भी। और इसे वे बहुत स्वाभाविक मानती हैं।
राजीव आईप और विनायक वर्मा लिखित Ammachi’s Incredible Investigation जिसका हिन्दी अनुवाद ऋषि माथुर ने अम्माची की खोज अनोखी शीर्षक से किया है, एक अनोखी एवं रोमांचक कहानी है। यह कहानी एक दादी और पोते की है। शरारती सूरज अपनी दादी के आँखों में धूल झोकते हुए, उनियाप्पम चुरा लेता है। पर दादी के साथ मिलकर वह एक सीधे-साधे बच्चे की तरह उनकी चोर को पकड़ने में मदद करने का दिखावा करता है। आख़िरकार अपनी सूझ-बूझ से दादी सूरज को पकड़ लेती है। यह सीधी-साधी कहानी बाल जीवन तथा हमारे समाज में महिलाओं की दादी-नानी की एक अलग भूमिका का प्रतिनिधित्व करती नज़र आती है जो एक ही समय में बच्चों की दादी-नानी और दोस्त दोनों होती हैं।
अरुंधति नाथ लिखित Ready? Yes! Play! जिसका हिन्दी अनुवाद तैयार? हाँ! खेलो! शीर्षक से सुमन बाजपेयी ने किया है, दृष्टिबाधित बच्चियों के क्रिकेट खेल पर आधारित कहानी है। अनु, मृदुला, शांता, अमिता और रुमी कम या अधिक मात्रा में दृष्टिबाधित हैं पर इन्हें क्रिकेट में बहुत रुचि है। अनु के पापा की मदद से ये सभी इस खेल में पारंगत हो जाती हैं और इस तरह अपने स्कूल का भी नाम रोशन करती हैं। अनु का मिताली राज की प्रसंशक होना भारतीय महिला क्रिकेट टीम के प्रति लेखिका का सम्मान और भविष्य की पीढ़ी को भी उनके महत्त्व से परिचित होने का संदेश देती है।
जयंती मनोकरन लिखित Chipko Takes Root जिसका हिन्दी अनुवाद ऋषि माथुर ने चिपको-चिपको वृक्ष बचाओ शीर्षक से किया है, चिपको आंदोलन से जुड़ी पर्यावरण पर आधारित प्रमुख बाल पुस्तक है। गौरा देवी सहित चिपको आंदोलन में नारियों ने पर्यावरण को बचाने के लिए जो अहिंसक आंदोलन किया उसे हम नहीं भूल सकते। इस कहानी में एक भोटिया लड़की दिची अपने प्यारे पेड़ों को बचाने के लिए उसी आंदोलन का सहारा लेती है और सफल भी होती है।
सौम्या राजेन्द्रन कृत The Weightlifting Princess बच्चियों के सपनों को नई उड़ान देने वाली कहानी है। यह भारत्तोलक बनने के अपने सपने को साकार करने वाली एक राजकुमारी की कहानी है। राजा चाहते हैं कि वह उसकी शादी एक बड़े और सुंदर राजकुमार से करें पर राजकुमारी तो भारत्तोलन प्रतियोगिता सूर्या चैंपियनशिप जीतना चाहती है और बर्फ की भूमि ताइबर जाना चाहती है। जीवन को अपनी आकाँक्षा और कसौटियों पर खरा उतारने की क्षमता रखने वाली महिलाओं की यह सरल कहानी है।
अमृताष मिश्र लिखित Teaching Pa एक पिता और पुत्री के सम्बन्ध पर आधारित सुंदर कहानी है। इसका हिन्दी अनुवाद पापा को पढ़ाना शीर्षक से स्वागता सेन पिल्लै ने किया है। पिता तो अपनी बच्चों को हमेशा पढ़ाया ही करते हैं पर बच्चों का खासकर बेटी का अपने पिता को पढ़ाना नया एवं अद्भुत भी है। इस कहानी में दिया रोज़मर्रा के छोटे-मोटे उदाहरणों द्वारा अपने पिता को पढ़ाती है और पिता आम विद्यार्थियों की तरह अपनी मास्टरनी बेटी से पढ़ने से बचने की कोशिश करते हैं।
बाल साहित्य, कॉमिक्स में सुपर हीरो के बारे में तो आपने बहुत पढ़ा होगा, जिसका सुपर हीरो अद्भुत शक्तियों से लैस कोई पुरुष या लड़का होता है। पर क्या आपने सुपर हीरो के रूप में किसी लड़की को देखा है, जिसके पास महज़ मानवीय शक्तियाँ हैं पर फिर भी वह ख़तरों की खिलाड़ी है। बाल साहित्य में ऐसी कहानियाँ भी लिखी जा रही हैं। सी जी सैलामैंडर द्वारा लिखित Megan series ऐसी ही तीन कहानियाँ हैं जिनका हिन्दी अनुवाद ऋषि माथुर और वसुंधरा बहुगुणा ने किया है। ये कहानियाँ एक तरफ जहाँ रोमांचक हैं वहीं दूसरी तरफ वास्तविक एवं ज्वलंत मुद्दों जैसे पर्यावरण सुरक्षा से भी सम्बन्धित हैं और लड़की को एक नए रूप में दर्शाते हैं।
दीपा अग्रवाल लिखित शान्ति का मित्र कथ्य के रूप एक साधारण कहानी है जो लड़कियों के स्कूल भेजने के मुद्दे पर केंद्रित है। गरीबी के कारण शान्ति को उसकी माँ शहर उसके चाचा-चाची के पास भेज देती है। चाचा-चाची उसे यह कहकर शहर लाते हैं कि उसे पढ़ायेंगे पर वह उससे नौकरों की तरह महज़ घर का काम लेते हैं। अपने मित्र, एक पेड़ की मदद से आख़िरकार शांति अपने चाचा-चाची का दिल जीत लेती है और उसका स्कूल में दाखिला भी होता है।
बाल कहानियों में महज़ लड़कियों की शिक्षा पर ही ज़ोर नहीं दिया गया बल्कि शिक्षित लड़कियाँ समाज को बदलने में किस प्रकार मदद कर रही हैं इस पर भी ज़ोर दिया गया है। रुक्मणी बैनर्जी लिखित दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना ऐसी ही कहानी है। इस कहानी में दीदी गरीब बच्चों को पढ़ाती हैं और उन्हें किताबें देती हैं। इस तरह बच्चे पढ़ना-लिखना और अच्छे से रहना सीख जाते हैं। जब दीदी बिमारी के कारण उनके पास नहीं आ पाती तो बच्चे स्वयं अपनी सूझबूझ से उनके पास पहुँच जाते हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि बाल साहित्य में स्त्री या बालिकाओं को महत्त्वपूर्ण हिस्से के रूप में दर्शाया गया है। यहाँ महिलाएँ किसी एक खाँचे में नहीं बल्कि जीवन की अनन्य जीवन्त रूपों में दिखाई देती हैं। इस दृष्टि से बाल साहित्य काफ़ी समृद्ध दिखाई देता है।
राजेश खर और संध्या
हिन्दी संपादकीय समूह