हिन्दी दिवस की बधाई तब तक अधूरी है जब तक हम बच्चों को हिन्दी या उनकी मातृभाषा में बोलने पर हतोत्साहित करना नहीं छोड़ते। जैसे ही हम उन्हें ‘सेब’ नहीं ‘एप्पल’, ‘पिल्ला’ नहीं ‘पपी’ या ‘दादी’ नहीं ‘ग्रैनी’ बोलने के लिए कहते हैं परोक्ष रूप से हम उन्हें हिन्दी बोलने के लिए हतोत्साहित ही कर रहे होते हैं। यह बात पढ़ने के लिए बच्चों की पुस्तकों के चुनाव पर भी उतनी ही सही है। हमने बच्चों को कभी उनकी भाषा में पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया है। आज भी आमतौर हम उन्हें उनकी मातृभाषा में पुस्तकें उपलब्ध नहीं कराते। किसी भी भाषा की पुस्तक पढ़ने या उनको उपलब्ध कराने में कोई बुराई नहीं है पर ज़रूरी है कि हम उन्हें उनकी भाषा में भी पुस्तकें उपलब्ध कराएँ। ताकि वह अपनी भाषा और अपने आस-पास से जुड़ी पुस्तकें पढ़ सकें।
नई शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में करने का प्रावधान भी इसीलिए किया गया है कि बच्चे अपनी भाषा में शिक्षा प्राप्त कर सकें। हिन्दी भारत की महत्त्वपूर्ण संपर्क भाषा भी है, इसलिए इसकी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। जब तक हम हिन्दी में बच्चों को उच्च गुणवत्तापूर्ण साहित्य नहीं उपलब्ध कराएंगे तब तक उनसे हिन्दी में ज्ञान साहित्य या पाठ्य पुस्तकों को पढ़ने की बात करना बेमानी है।
वर्तमान दौर में बहुत से प्रकाशक बच्चों के लिए अच्छा साहित्य प्रकाशित करने में जुटे हैं। हिन्दी भाषा भी उसमें पीछे नहीं है। वर्तमान समय के प्रसिद्ध लेखक जैसे विनोद कुमार शुक्ल, राजेश जोशी, नासिरा शर्मा और प्रयाग शुक्ल ने भी बच्चों के लिए उम्दा साहित्य रचा है। प्रथम बुक्स में हमारे पास बहुत सी उम्दा पुस्तकें हैं जो देश के प्रसिद्ध बाल लेखकों और चित्रकारों द्वारा रचित हैं। इन पुस्तकों में बच्चे प्रकृति के हर जड़ और चेतन को हैलो करते हैं। भारत की संस्कृति धर्म, भाषा, त्योहार और सामूहिकता की संस्कृति है इसलिए यहाँ जब रोज़े में हकीम को हिचकियाँ आती हैं तो पूरा आस-पड़ोस निदान के लिए इकट्ठा हो जाता है। इनमें अंधेरे की आवाज़ को पहचानने का मर्म है, प्रकृति के प्रति हमारी आशाओं का स्पर्श है, अंतरिक्ष का आवाज़ बनी केसरबाई केरकर की धुन है, अपना गोल! हासिल करने का जुनून है, प्लास्टो पिशाच को भगाने का संकल्प है, मौसम का अनुमान लगाने के लिए बारिश के पीछे लगे वैज्ञानिकों का मान है। नगालैण्ड में अपनी बहन का इंतज़ार करता अफो है तो चेन्नई में अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ती ग्रेस है। कुल मिलाकर वो सब है जो बच्चे अपनी भाषा में पढ़ना चाहेंगे और पढ़ने का आनंद लेंगे।