अपनी भाषा, अपनी मातृ भाषा को प्रचार नहीं कार्य की आवश्यकता होती है। यह आवश्यक है कि यह कार्य स्वतः किए जाएँ न कि जबरन या खानापूर्ति के लिए। हम देखते हैं कि सितम्बर आते ही हिंदी पखवाड़ा के पोस्टर और उससे सम्बंधित कार्यक्रमों की सूची लगभग सभी सरकारी कार्यालयों के मुख्य द्वार सहित जगह-जगह लग जाते हैं। हम सभी जानते हैं कि ये सभी कार्यक्रम और प्रचार महज़ खानापूर्ति हैं। अगर वास्तव में हम अपनी भाषा से प्यार करते हैं और उसे आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो हमारा अपनी भाषा में काम करना आवश्यक है। भारतवासी होने के कारण हमारे पास बहुभाषी होने का सौभाग्य है। यह बहुभाषिकता हमारी मातृभाषाओं को समृद्ध करने का कार्य करती हैं। अपनी भाषाओं में कार्य करने के लिए हमें अपने घर में बच्चों से अपनी भाषा में बात करना होगा और उन्हें, उस भाषा में पुस्तकें उपलब्ध करवानी होंगी। इस तरह से वह अपनी भाषा से अधिक से अधिक जुड़ सकेंगे। प्रथम बुक्स ने मातृभाषाओं के पुस्तकालयों का निर्माण कर इस दिशा में कार्य किया है।
यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि बच्चा अपनी भाषा में जितनी अधिक तीव्रता एवं असरदार तरीके से सीखता है, उतना अन्य भाषाओं में नहीं। प्रथम बुक्स इस बात को बहुत अच्छी तरह समझता है इसलिए हम अधिक से अधिक पुस्तकें हमारे देश में सबसे अधिक बोली एवं समझी जानी वाली भाषा, हिंदी में छापते हैं। इनमें बच्चों के मनोविज्ञान और उनकी ज़रूरतों के मुताबित कथ्य एवं कथ्य से जुड़े आकर्षक चित्र उपस्थित होते हैं। इन कहानियों की एक विशेषता यह भी है कि अधिकतर अनूदित कहानियाँ होते हुए इनमें हिंदी भाषा का अपना स्वाद और संस्कृति समाहित है। ‘शेंडा, गालू और भेर’ शर्षक कहानी को ही लें तो देखते हैं कि इस कहानी में दो जानवरों के नाम को मिलाकर काल्पनिक जानवरों के नाम दिए गए हैं जैसे शेर+गेंडा= शेंडा, गेंडा+शेर= गेर, गेंडा+भालू= गालू, भालू+शेर= भेर, सिंह+मगर= सिंगर और मगर+सिंह= मिंह। हिंदी कहानी में जानवरों के व्यक्तिगत नामों तक को बदला गया है, जो कहानी को मौलिकता प्रदान करता है।
इन हिंदी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें हमारे देश की सांस्कृतिक विविधता समाहित होती है। उदाहरण के लिए ‘उमा और उपमा’ दक्षिण भारत की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी है।
इस कहानी के द्वारा हिंदी बाल पाठकों का दक्षिण भारत के खान-पान से परिचय होता है। इसी प्रकार ‘अम्मा, आप कैसे बनाती हैं घी?’ कहानी में मराठी भोजन पूरन पोली से पाठकों का परिचय होता है
बच्चों के सम्पूर्ण मानसिक विकास के लिए महज़ पाठ्य-पुस्तकें काफ़ी नहीं होती। यह आवश्यक है कि हम उन्हें विविध विषयों से सम्बंधित तथा पाठ्य-पुस्तकों के पूरक के रूप में उनकी अपनी भाषा में कुछ अन्य किताबें भी उपलब्ध करवाएँ। प्रथम बुक्स में अलग-अलग विषयों से सम्बन्धित ऐसी बहुत सी पुस्तकें उपलब्ध हैं। हमारे पास गाँव की कहानियाँ हैं, शहर की कहानियाँ हैं। कला की कहानियाँ हैं, विज्ञान की कहानियाँ हैं। जीव कथाएँ हैं, तो लोककथाएँ भी हैं। कहानियाँ इतिहास की हैं, तो समाज की भी हैं।
हमारे पास भी राजकुमार एवं राजकुमारियों की कहानियाँ हैं, पर वह परम्परागत राजकुमारों और राजकुमारियों से बहुत अलग हैं। उदाहरण के लिए ‘राजकुमारी नीला’ एक ऐसी राजकुमारी है जो भारत्तोलक बनने का सपना देखती है, और बनती भी है। इस कहानी में राजकुमारी नीला की माँ को, नीला को देखकर अपना बचपन याद करते हुए दर्शाया गया है, जब वह भी ये सब करना चाहती थी, पर कर नहीं पाई थी। यह कहानी यह भी दर्शाता है कि अब वक्त बदल चुका है और लड़कियों के सपने भी। अब लड़कियाँ हर क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाना चाहती हैं। मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई इस कहानी को प्रथम बुक्स ने हिंदी में भी अनूदित करवाया ताकि हिंदी पाठकों को यह बेहतरीन बाल कहानी उपलब्ध हो सके।
अभिभावकों के लिए यह आवश्यक है कि वह बच्चों को A फॉर APPLE तो सिखाएँ पर यह भी आवश्यक है कि वह ‘अ’ से ‘अनार’ का प्रयोग करना न भूलें। अपनी भाषा में बाल पुस्तकों को पढ़कर बच्चों की कल्पना शक्ति का विकास होता है और वह कोई भी चीज़ अधिक शीघ्रता से सीख सकते हैं। इस प्रकार हिंदी दिवस की सार्थकता हमारे लिए तभी है, जब हमारे देश में बच्चों को अपनी भाषा में बेहतरीन पुस्तकें प्राप्त हो सकें और वे इन्हें पढ़ सकें।